नई दिल्ली। आरक्षण को लेकर मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर घमासान मच गया है। कोई भी दल इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता। जबलपुर उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने आरक्षण को बचाने के लिए नई तरकीब क्या निकाली, कांग्रेस भी परेशान हो उठी। उसने इसका श्रेय भी खुद को देना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस के नेता दमखम के साथ मैदान में उतर गए हैं। इससे साफ है कि राज्य की राजनीति में एक बार फिर पिछड़ों का आरक्षण बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। बता दें कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी 50 फीसद से अधिक है। जाहिर है कि यह वर्ग जिस ओर झुकेगा सत्ता के समीकरण भी उस ओर ही रहेंगे। यही वजह है कि 15 साल बाद 2018 में सत्ता में आई कांग्रेस ने सिलसिलेवार तरीके से पिछड़े व आदिवासी वर्गो को साधने की कवायद शुरू की थी। पहले आदिवासी वर्ग को साधने के लिए अगस्त 2019 तक अधिसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों द्वारा साहूकारों से लिए गए ऋण को शून्य करने के लिए साहूकारी अधिनियम में प्रविधान किया। लोकसभा चुनाव के पहले उसने पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का दांव चल दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ ने अध्यादेश के माध्यम से प्रविधान को लागू कर दिया। कुछ दिनों बाद विधानसभा में विधेयक भी पारित करा लिया। इस बीच पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने के खिलाफ जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी गई। उच्च न्यायालय ने 14 फीसद से अधिक आरक्षण को नियम विरुद्ध मानते हुए इसके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। तब से ही यह मामला उलझा हुआ है। इसको लेकर भाजपा और कांग्रेस में जुबानी जंग चल रही है। हाल ही में हुए विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने इसे फिर हवा दी और शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश की। सियासी नफा-नुकसान को भांपने में माहिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ सदन में तगड़ा पलटवार किया, बल्कि कमल नाथ और कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं, महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर उन्होंने उच्च न्यायालय में लंबित प्रकरणों को छोड़कर शेष विभागों में पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने का नया आदेश जारी करके बढ़त भी बना ली।